धन दौलत इंसान के लिए बहुत कुछ तो है लेकिन सब कुछ नहीं. अगर आप धन इस लिए इकठ्ठा कर रहें ताकि आप खुश रहें तो याद रहे धन की यह खासियत है कि वह आप को तभी ख़ुशी देती है जब आप उसे दूसरों पर और विशेष कर ज़रुरतमंदों पर खर्च करें.
यह आवश्यक नहीं कि जहाँ धन हो वहीँ True happiness हो. आइये आज हम एक Story पढ़ें, यह बिलकुल सच्ची कहानी है जिससे यह साबित होता है की सच्ची ख़ुशी (True happiness)की खोज बादशाहों को भी फकीरों के पाऊं पर झुका देती है.
सच्ची ख़ुशी True Happiness Hindi Story
अबू हसन अपने समय के प्रसिद्ध संत थे. वे बहुत सरल, विनम्र व सदा जीवन व्यतीत करते थे. अनेक लोग उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करते थे. मुहम्मद गजनवी उनके इलाके का बादशाह था. जब बादशाह बुध हुआ और उसे लगा की उसकी मृत्यु नजदीक आचुकी है तो उसके मन में ख्याल उठा की एक दिन मुझे भी मरना है और मुझे भी कर्मों का हिसाब चुकाना होगा.
यह जो सोन-चांदी, धन दौलत मैं ने इकट्ठा कर रखा है, वह सब के सब यहीं पड़ा रह जाएगा. इस सोच की उसके दिमाग में आते ही वह उदास हो गया. उसने अपने वजीर से कहा, ‘क्या अपने मुल्क में कोई ऐसा फकीर है, जिसके सामने जा कर मैं अपनी मन की बात कह सकूं और उसकी दुआ प्राप्त कर सकूँ? यह मनोव्यथा मुझ से नहीं सही जाती.’
वजीर ने उत्तर दिया, ‘हुजुर अबू हसन बहुत बड़े महात्मा हैं आप चाहें तो उससे मिल सकते हैं.’
मुहम्मद गजनवी शाही ठाठ बाट से संत से मिलने गया. उसके दूत ने जाकर फकीर से कहा, ‘बादशाह आपके दर्शन को आए हैं. क्रप्या बहार निकल कर उनका स्वागत कीजिए.’
अबू हसन ने उत्तर दिया, ‘मैं इस समय बादशाहों के बादशाह की हुजूरी में हूँ, मुझे तुम्हार्रे बादशाह से मिलने का समय नहीं है.’
बादशाह ने जब यह उत्तर सुना तो उसे बहुत बुरा लगा, उसने सोचा कि इस फकीर की परीक्षा लेनी चाहए. उसने अपना वेश बदल कर एक साधारण सेवक का वेश धारण किया और संत के सामने उपस्थित हुआ.
संत ने देखते ही कहा, ‘ये तो उपरी दिखावे हैं. इनमें क्या रखा है. आज बादशाह गुलाम के कपडे पहन कर आया है तो वो गुलाम थोड़े ही हो जाएगा..’
बादशाह शर्मिन्दा हुआ और संत के आगे नतमस्तक हुआ. जब दुख-दर्द कहकर संत की दुआ लेकर चलने लगा तो उसने सौ स्वर्ण मुद्राएं भेंट कीं. संत ने उन्हें छुआ नहीं और एक सुखी रोटी का टुकड़ा देते हुए कहा, ‘इसे खा लीजिये.’
बादशाह ने खाना चाहा लेकिन वह उसे अपने गले से निचे नहीं उतार पाया इस पर संत ने उससे कहा, ‘बादशाह आप एक रोटी का टुकड़ा नहीं निगल सकते तो मैं आपकी मोहरें कैसे निगल लूँगा?’.
किसने कहा है की ख़ुशी दौलत से नहीं खरीदी जा सकती. अगर ख़ुशी को पहचान लें तो आसानी के साथ बिलकुल सस्ते दामों में उसे खरीद सकते हैं.
क्या आप जानते हैं ख़ुशी, True happiness कैसे खरीदते हैं ?
आइये आज मैं बतलाता हूँ!
अगर दिवाली और होली पर आप अपने ऊपर हज़ार रुपय खर्च करते हैं तो सौ रुपय का उन गरीब बच्चों के लिए भी खरीद लें जो आँखों में आंसू लिए दूसरों को खुश होता देख हंसने की कोशिश करते हैं.
अगर आपके घर शादी है या किसी पार्टी का प्रोग्राम है तो मेहमानों के आने या उनके खाने से पहले मोहल्ले के गरीब लोगों के लिए भी खाने का कुछ अलग से इन्तेजाम रखें.
एक आध गरीब घर को नज़र में रखें और कोशिश करें कि उनका जीवन गरीबी से कुछ ऊपर उठ कर रहे.
बस इसी तरह ढूंडते हुए और चंद रूपए में ख़ुशी खरीदते हुए आगे बढते जाएं. 🙂
very nice and impressive story…..saccha sukh to doosron ko khushi dena hai……
Wonderful inspring story, Really these are true facts
bahut gyanverdhak kahani hai
BAHUT SUNDER AUR ACHCHI SHIKSHA DENEVALI KAHANI.
बहुत ही सुंदर कहानी, मन को भा गयी। हार्दिक आभार।
सही कहा आपने, वो ही खुशी असली होती है, जो दूसरों की मदद करके हासिल होती है। काश, अगर इसे दुनिया समझ ले, तो ये धरती स्वर्ग बन जाए।